Thursday, November 14, 2013

पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही


पुनर्जन्म को लेकर प्राचीन भारतीय साहित्य और पुराण कथाओं ने वैसे ही दुनियां भर में सरगर्मी फैला दी है.संभवतः इसीलिए अब यूरोप और अमेरिका जैसे नितांत आधुनिक और मशीनी देश भी पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार खोजने लगे हैं.अमेरिका में वर्जीनियां विश्वविद्यालय ने तो एक परा – मनोविज्ञान विभाग ही खोल दिया है.इस विश्वविद्यालय ने भारत में अपने शोध के पश्चात् यह निष्कर्ष दिया कि भारत की यह धारणा सही है कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है.

मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मरणासन्न व्यक्ति को मृत्यु की अनुभूति हो जाती है.पश्चिमी मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग को एक बार ऐसा ही अनुभव हुआ.अपनी इस अनुभूति का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मेमोरीज ड्रीम्स रिफ्लेक्शंस’ में किया है.एक बार उनको दिल का भयानक दौरा पड़ा.डाक्टरों ने उनके जीवित रहने की आशा छोड़ दी थी.आक्सीजन द्वारा किसी तरह उनको जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा था.

उस मृतप्राय अवस्था में उन्होंने अनुभव किया कि जैसे वे उड़ रहे हैं.धरती से कई मील दूर आकाश में एक बादल के टुकड़े की तरह इधर-उधर भटक रहे हैं और वे इतने हलके हो गए हैं कि इच्छानुसार जब जिस दिशा में जाना चाहें जा सकते हैं.इस अवस्था में वे बहुत देर तक रहे.नभ में विचरते हुए उन्होंने येरुशलम शहर का भी अवलोकन किया.कुछ घंटों तक ऐसी अवस्था में रहने के बाद,वे पुनः अपने पहले शरीर में आ गए और उनको अस्पताल के आस-पास का वातावरण धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा,जैसे मूर्च्छाके पश्चात् कोई व्यक्ति धीरे – धीरे चेतनावस्था में आता है.

मृत्यु  - संबंधी ऐसी धारणाएं,जैसे ‘आत्मा परमात्मा में समा जाती है’,’मिटटी में मिल जाती है’ या फिर कबीर के शब्दों में ‘फूटा कुंभ जल जलहिं समाना’,आज तक सुनने को मिलती रही है,लेकिन उनका वैज्ञानिक आधार भी है,यह बहुत कम लोगों को पता है.मरणोपरांत हमारी आत्मा एक विशेष प्रक्रिया से गुजरने के बाद दूसरे शरीर में प्रवेश करती है,जिससे एक नए शरीर का जन्म होता है.सृष्टि की रचना में,प्राकृतिक उपादानों को छोड़कर,शेष समस्त वस्तुओं या पदार्थों का अंत निश्चित है.

कदाचित यही कारण है कि शरीर के विनाश को हम रोक नहीं सकते.शरीर का विनाश या मृत्यु क्यों अटल है,वैज्ञानिक इसका एक ठोस कारण बताते हैं.उनका कहना है कि हमारा सारा शरीर कोशिकाओं द्वारा बना है.प्रत्येक कोशिका में ‘प्रोटोप्लाज्म’ नामक एक तरल और चिकना पदार्थ होता है.इस ‘प्रोटोप्लाज्म’ के द्वारा दूषित वायु बाहर आती है और ताज़ी हवा अंदर जाती है.हमारी साँस के साथ ये करोड़ों की संख्या में ये ‘प्रोटोप्लाज्म’ नामक कण विद्यमान रहते हैं.

इन प्रोटोप्लाज्म’ कणों में ‘न्यूक्लियस’ नामक एक अन्य पदार्थ होता है.यह पदार्थ ही मानव-शरीर में जीवन शक्ति प्रदान करता है.कोशिकाओं को पुष्ट करने में भी यह सहायक होता है.यदि यह पदार्थ सूखना आरंभ हो जाए तो ‘प्रोटोप्लाज्म’ कण भी धीरे-धीरे क्षीण होने आरंभ हो जाते हैं और इस प्रकार यह ‘प्रोटोप्लाज्म’ कण क्षीण होते- होते एक दिन अकस्मात ख़त्म हो जाते हैं और इनसे मूल चेतना गायब हो जाती है.

इसी प्रकार प्रजनन प्रक्रिया भी पुनर्जन्म के सिद्धांत को महत्व प्रदान करती है.माता-पिता के संसर्ग के परिणामस्वरूप शरीर के कुछ सूक्ष्म संस्कार भी एक-दूसरे शरीर में आ जाते हैं.सम्प्रेषण का यह सिद्धांत पुनर्जन्म के सिद्धांत को युक्तियुक्त होने में सहायता करता है.जिस प्रकार दो इन्द्रियों से एक नए शरीर को जन्म मिलता है उसी प्रकार एक शरीर को छोड़ने के पश्चात जीवात्मा अपने साथ उस शरीर के सूक्ष्म संस्कार भी ले जाती है.वे संस्कार उसके साथ बने रहते हैं और नए शरीर में भी विद्यमान रहते हैं.इन्हीं संस्कारों को हमने ‘पूर्वजन्म की यादें’ की संज्ञा दी है और ऐसी घटनाओं को सुनकर या पढ़कर हम आश्चर्यचकित हो जाते हैं.

शरीर में कोशिकाओं के साथ रहने वाला ‘प्रोटोप्लाज्म’ जीवात्मा का ही दूसरा रूप है.वैज्ञानिकों के अनुसार मृत्यु के पश्चात यही प्रोटोप्लाज्म शरीर से अलग होने पर मिट्टी-राख आदि में समाहित हो जाता है.वायुमंडल में प्रवेश होने पर यह प्रोटोप्लाज्म खेतों-खलिहानों से होते हुए वनस्पतियों में पहुंच जाता है.उसके पश्चात यह फूलों,फलों,और अनाज में समाविष्ट हो जाता है.इन फूलों,पत्तियों और अनाज को जानवर और मनुष्य दोनों खाते हैं.यही ‘प्रोटोप्लाज्म’ कण ‘जीन्स’ में परिवर्तित होते हैं और नए शिशु के साथ दोबारा जन्म लेते हैं.

नया जन्म लेने पर जब शिशु के स्मृतिपटल पर कोई ‘प्रोटोप्लाज्म’ जाग्रत हो जाता है,तब उसको पहले जीवन की घटनाएं धीरे-धीरे याद आने लगती हैं.

आत्मा के संबंध में गीता में विस्तार से कहा गया है.अध्याय दो में एक स्थान पर कहा गया है कि..... 

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||

अर्थात आत्मा न तो शस्त्रों द्वारा नष्ट होती है और न इसको अग्नि जला सकती है.इसको जल गीला नहीं कर सकता और न ही वायु सुखा सकती है.यह मात्र गीता की ही बात नहीं.आज का विज्ञान जगत भी इस बात को स्वीकार करने लगा है कि हमारे शरीर में कोई सूक्ष्म पदार्थ ऐसा रहता है,जो शरीर के नष्ट होने के बाद भी नष्ट नहीं होता और यही सूक्ष्म पदार्थ आत्मा कहलाता है.

पश्चिमी वैज्ञानिक अपने प्रयोगों द्वारा इस भारतीय दृष्टिकोण के बहुत पास आते जा रहे हैं कि आत्मा अजर-अमर है.अमेरिका के वैज्ञानिक विलियम मैंड्रगल ने आत्मा के विषय में विभिन्न प्रकार की खोजें की हैं.उन्होंने एक ऐसी तराजू का निर्माण किया है जो अशक्त मरीज के पलंग पर लेटे रहने के बावजूद ‘ग्राम’ के हजारवें भाग तक का वजन बता सकता है.उन्होंने एक पलंग पर एक रोगी को लिटाकर उसके पास एक मशीन लगा दी,जो वास्तव में भार तौलने वाली तराजू थी.वह मशीन, उसके कपड़ों,पलंग,फेफड़ों की सांसों और दी जाने वाली दवाईयों तक का वजन लेती रही.

जब तक वह रोगी जीवित रहा,उस तराजू की सूई में कोई अंतर नहीं आया.वह एक स्थान पर खड़ी रही,लेकिन जैसे ही रोगी के प्राण निकले,सूई पीछे हट गई.रोगी का वजन आधी छटांक कम हो गया.ऐसे ही प्रयोग मैंड्रगल ने कई रोगियों पर किये है.और उसने यह निष्कर्ष निकला कि कोई ऐसा सूक्ष्म तत्व है,जो जीवन का आधार है और उसका भी वजन है.वास्तव में यही आत्मा है.

इसी प्रकार डॉ. गेट्स ने भी आत्मा के बारे में कई प्रयोग किये हैं.इन्होंने ऐसी प्रकाश-किरणों की खोज की है,जिनका रंग कालापन लिए हुए गाढ़ा लाल है.ये किरणें मरे हुए पशुओं से प्राप्त की गई हैं.इन्होंने एक मरणासन्न चूहे को गिलास में रखकर ये किरणें उस पर फेंकी.दीवार पर उस चूहे की छाया दिखाई दी.प्राण निकलते ही वह छाया गिलास से निकली और दीवार की ओर बढ़ी.उस दीवार में रोडापसिन नामक पदार्थ का लेप किया गया था,क्योंकि इस मसाले का प्रयोग करने के बाद ही दीवार पर ये किरणें स्पष्ट दिखाई देती हैं.

यह छाया कुछ दूर तक ऊपर दिखाई दी और उसके पश्चात उसका कहीं कुछ पता नहीं लगा.डॉ. गेट्स ने इस छाया की सही स्थिति जानने के लिए गैल्वानोमीटर से उन किरणों की शक्ति तथा मानव-शरीर में संचालित विद्युत तरंगों को मापा और उन्हें लगा कि दीवार पर पड़ने वाली प्रकाश-किरणों की अपेक्षा शरीर की ताप-शक्ति अधिक होती है.डॉ. गेट्स के अनुसार यही विद्युत शक्ति आत्मा की प्रकाश-शक्ति है.

ऐसे ही अनेक प्रयोग अमेरिका में भी किये गए हैं.प्रयोगशाला में एक चैम्बर,जो देखने में पारदर्शी सिलिंडर-सा लगता है,रखा जाता है.इसके भीतर के भागों में रासायनिक घोल पोता जाता है.इस चैम्बर में चूहों और मेढकों को जीवित अवस्था में रखकर प्रयोग किया जाता है.

फ़्रांस के डॉ. हेनरी बराहुक ने अपने मरणासन्न बच्चों पर ऐसे प्रयोग किए हैं.इसी तरह लंदन के प्रसिद्द डॉ. जे. किलर ने अपनी पुस्तक ‘दि ह्यूमन एटमोस्फियर’ में भी अपने कई प्रयोगों का वर्णन किया है,जो उन्होंने रोगियों की जाँच करते समय किये थे और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मानव देह में एक प्रकाशपुंज का अस्तित्व अवश्य है, जो मृत्यु के पश्चात भी यथावत रहता है.

अनेक मान्यताओं को अस्वीकार करने वाले रूस ने भी इस ओर काम किया है.उनकी विज्ञान संबंधी खोजों ने भी इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि व्यक्ति का पुनर्जन्म संभव है.वहां की प्रयोगशालाओं में अनेक प्रयोग किये गए और प्रयोगों के पश्चात् वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुंचे कि मरणोपरांत भी कोई ऐसा सूक्ष्म तत्व रह जाता है,जो इच्छानुसार पुनः किसी शरीर में प्रवेश कर एक नये शरीर को जन्म देता है.

साधारणतः पदार्थ की चार अवस्थाएँ होती हैं – ठोस,द्रव,गैस और प्लाज्मा.रूस के वैज्ञानिकों ने एक और अवस्था की खोज की है,यह पांचवीं अवस्था ‘जैव प्लाज्मा’ है.दूसरे शब्दों में,यही अवस्था ‘प्राण’ है,जिसके न रहने से व्यक्ति मृत कहलाता है.

इस पांचवीं अवस्था की खोज 1944 में रूस के भौतिक शास्त्री वी. एस. ग्रिश्चेंको ने की.इनका कहना है कि ‘जैव प्लाज्मा’ में ‘आयंस’ स्वतंत्र इलेकट्रान और स्वतंत्र प्रोटान होते हैं,जिनका अस्तित्व स्वतंत्र होता है और जिनका नाभिक से कोई संबंध नहीं होता.इनकी गति बहुत तीव्र होती है और दूसरे जीवधारियों में शक्ति के संवहन करने में यह सक्षम होता है.यह मानव की सुषुम्ना नाड़ी में एकत्रित रहता है.यह टेलीपैथी,मनोवैज्ञानिक और मनोगति की प्रक्रियाओं से मिलता-जुलता है.

पुनर्जन्म से संबंधित कुछ खोजों में रूस के वैज्ञानिकों को अत्यधिक श्रम करना पड़ा है.कई विकसित उपकरणों के प्रयोग से यह खोज संभव हो सकी है.उच्च वोल्टेज वाली फोटोग्राफी,क्लोजसर्किट टेलीवीजन तथा मोशन पिक्चर तकनीक आदि उपकरणों से वे अपने प्रयोगों को सफलता की सीमा तक पहुंचा सके हैं.

भारत में प्रचलित ‘सूक्ष्म शरीर’ की मान्यता से रूस की वैज्ञानिक ‘बायो-प्लाज्मा’ की धारणा बहुत साम्य रखती है.रूसी वैज्ञानिक दृढ़तापूर्वक यह स्वीकार करते हैं कि बायो-प्लाज्मा का अस्तित्व है और यह बायो-प्लाज्मा भारत के ‘सूक्ष्म-शरीर’ या आत्मा से बहुत कुछ मिलता जुलता है.

अमेरिका ने भी रूस की इस वैज्ञानिक खोज को स्वीकार किया है.रूस के वैज्ञानिक शैला आस्त्रेंडर तथा लीं स्क्रोडर ने एक स्थान पर अपनी इस खोज को महत्व प्रदान करते हुए बड़े गर्व से कहा है कि ‘जीवधारियों में कोई प्रकाशपुंज,कोई सूक्ष्म शक्ति या कोई अदृश्य शरीर भौतिक शरीर को आवृत्त किये रहता है,इसका प्रमाण हमें मिल गया है.

इस प्रकाशपुंज को रूस के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप द्वारा देखा है.उनका कहना है कि मरणासन्न जीवधारी में उन्होंने फ्रीक्वेंसी पर कोई ऐसी वास्तु ‘डिस्चार्ज’ होते देखी है,जो पहले ‘क्लेयर वोमेंटस’(भविष्य को पढने वाले) ही देख पाते थे.जीवित शरीर में उनको उसी शरीर की प्रतिकृति देखने को मिली है.यही प्रतिकृति विद्युत –चुम्बकीय क्षेत्रों में समा जाती है.इस अदृश्य शरीर की एक विशिष्ट संरचना है.

इन परिणामों को ध्यान में रखते हुए यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत किसी ठोस वैज्ञानिक आधार पर आधारित है.हमारे प्राचीन ग्रंथ भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं. हमारे धर्म-ग्रंथों में वर्णित जीव और ब्रह्म की कल्पना जीवन और जीवनोपरांत जीवधारियों की स्थिति की ही गाथा है.

ब्रह्म मरणोपरांत की स्थिति है और जीव, जीवित समय की.जीव और ब्रह्म के पारस्परिक आदान-प्रदान पर ही समस्त चेतना-शक्ति निवास करती है.वह दिन दूर नहीं,जब विज्ञान पुनर्जन्म की सत्यताओं को सार्थक सिद्ध कर यह घोषणा कर देगा कि आदमी मरता नहीं है,उसके भीतर आत्मा नाम का तत्व होता है,और जो कभी नष्ट नहीं होता. नष्ट होता है,केवल शरीर. 

48 comments:

  1. @इस विश्वविद्यालय ने भारत में अपने शोध के पश्चात् यह निष्कर्ष दिया कि भारत की यह धारणा सही है कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है.
    राजीव कुमार जी ,आपका लेख रोचक है ,विचारोत्पदक है परन्तु आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूँगा कि "विश्वविद्यालय किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पंहुचा है " कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है."- शोध के आधारों का जिक्र नहीं किया है |यदि संभव हो तो वो भी बताएं तो समझने में आसानी होगी | इसी विषय पर मैंने भी एक लेख लिखा है |यदि आप चाहे पढ़ सकते हैं | लिंक दे रहा हूँ | यह अनबुझ पहेली है ,इसमें हर का अपना अपना सोच हो सकता है |हर सिद्धांत पर विचार करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है |ओल्ड पोस्ट अनुभूति : जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !



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    1. सादर धन्यवाद ! आ. कालीपद जी. आभार. आपकी शंका का समाधान करते हुए बताना चाहता हूँ कि - अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय के परा-मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. इयान स्टीवेंसन ने भारत में पिछले जन्म की स्मृतियों के कई ऐसे मामलों का गहन अध्ययन करने के बाद अपना निष्कर्ष प्रस्तुत किया था.इसके अलावा रूस एवं अमेरिका के परा मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन एवं वैज्ञानिक प्रयोगों,जिनके बारे में इस लेख में विस्तार से लिखा गया है,के आधार पर भारतीय प्राचीन साहित्य एवं पुराणों में वर्णित इस तथ्य को स्वीकृति दी.
      ऋग्वेद में कहा गया है कि ...एकम् सद् विप्रम् बहुधा वदंति. अर्थात्- बुद्धिमान लोग एक ही सत्य की कई व्याख्याएं करते हैं. वही हाल इस विषय पर भी है. इसलिए मतभिन्नता का होना स्वाभाविक है.

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    2. माननीय राजीव कुमार जी ! मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि आपका अध्ययन सुरुचिपूर्ण हैं और आप मतभिन्नता को स्वीकार करते हैं | अच्छी शिक्षा का यह पहला लक्षण है|मुझे आपकी बात पसंद आई | जहाँ तक विषय का प्रश्न है हम अपने सिमित वुद्धि से नियंता के वुद्धि को नाप नहीं सकते |
      सादर आभार !

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  2. पढ़ कर अच्छा लगा, हमारे ग्रंथ एवं सांस्कृतिक विरासत अनमोल है.

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    1. सादर धन्यवाद ! राकेश जी. आभार.

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  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    हिन्दू हूँ-
    मानता हूँ-

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  4. बहुत अच्छा लेख , राजीव भाई आपके लेख से मैं सहमत हूँ। , धन्यवाद
    अगर समय मिले तो सूत्र आपके लिए --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
    " जै श्री हरि: "

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    1. सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.

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  5. बहुत अच्छी जानकारी.आत्मा के संबंध में भारतीय एवं पश्चिमी विचारों की अच्छी प्रस्तुति.

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  6. पुनर्जन्म परामनोविज्ञान के अंतर्गत आता है . विदेशो में इस पर काफ़ी रिसर्च चल रहे है , अपने देश में लगभग नहीं . हमारा देश इस मामले में बहुत पिछड़ा है .मै अपने प्रायोगिक अनुभव अपने हिंदी ब्लॉग के जरिये प्रस्तुत कर रहा हम जिसमे अनेक प्रश्नो के उत्तर बुद्धिजीवी वर्ग को मिल जायेंगे -
    -रेणिक बाफना
    मेरे ब्लॉग :-
    १- मेरे विचार : renikbafna.blogspot.com
    २- इन सर्च ऑफ़ ट्रुथ / सत्य की खोज में : renikjain.blogspot.com

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  7. बहुत अच्छा लगा आपका लेख। ये विषय वास्तव में आश्चर्य में डाल देता है पर वैज्ञानिक दृष्टि से आपने जिस तरह से समझाया वो बहुत सराहनीय है।

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  8. पढ़ कर अच्छा लगा, राजीव जी आपके लेख से मैं सहमत हूँ।

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    1. सादर धन्यवाद ! मनोज जी. आभार.

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  9. फिर एक नयी जानकारी..
    पढ़कर अच्छा लगा.
    आभार...
    :-)

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  10. बिल्कुल सही.... लेकिन ये पुनर्जन्म का अवधारणा विस्मय करने वाले तत्व है आज तक लेकिन वैज्ञानिक तत्व को ही सही माना जायेगा ... बहुत बढ़िया लेख ...

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  11. पढ़कर अच्छा लगा.बढ़िया आलेख है !

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  12. bahut hi rochak lekh bahut bahut aabhar apka

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  13. ऐसा सुना है कि आत्मा में भी विकास वाद है मतलब चेतनाएं सदैव अपना उन्नत सवरूप ही धारण करती हैं | आज जो बच्चा जन्म लेता है उसकी ग्राह्य क्षमता पहले के बच्चों से कहीं अधिक है | इस से हम इस निष्कर्ष पर पहुचने कि कोशिस करते हैं कि मृत्यु के उपरांत हमारा जन्म निश्चय ही उन्नत चेतना प्राप्त करने के लिए होगा और हम मनुष्य योनि में ही पुनः जन्म लेंगे | यह विकास ही हमें मोक्ष कि ओर ले जायेगा |

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  14. हम इसी अवधारणा के साथ जीते हैं इसी लिए सतकर्मों के संचय का ध्यान रहता है...

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  15. हम इसी अवधारणा के साथ जीते हैं इसी लिए सतकर्मों के संचय का ध्यान रहता है...

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  16. सुन्दर विवेचना राजीव जी ,

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    1. सादर धन्यवाद ! नीरज जी. आभार.

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  17. चाहते तो यही हैं कि अगली बार ना आना पडे पर...........।
    बहुत सुंदर जानकारी पूर्ण आलेख।

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  18. पुनर्जन्म से संबंधित विभिन्न दृष्टिकोण की सुंदर समीक्षा.

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  19. राजीव जी, इस विषय पर इतना विस्तृत और सारगर्भित लेख पहली बार पढ़ा, बहुत बहुत बधाई और आभार..भारतीय ऋषियों की कही बातें सत्य हैं, अब विज्ञान भी उन्हें स्वीकारने लगा है, मानव जाति का भविष्य उज्ज्वल है.

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  20. इस विषय पर अधिकतर विदेशियों का लिखा ही पढ़ा था.....आपका लिखा अच्छा लगा

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  21. भाई मैं तो मानता हूँ कि पुनर्जन्म होता है।

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  22. विज्ञानं और आध्यात्म में सामजस्य और सापेक्षता लिए इस दृष्टि में दूरगामी खोज हो तो और प्रामाणिक साक्ष्य मिलेंगे ... बहुत ही अच्छा आलेख ...

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  23. अच्छा लेख !
    कल लिखी थी एक कविता ---
    --रात और मैं

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  24. Rajiv ji, nai janakari se lbalb shandar lekh likha hai aapane.

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